न तुम्हें होश रहेऔर नमुझे होश रहे इस क़दर टूट के चाहो मुझे पागल कर दो
आप इक ज़हमत-ए-नज़र तो करें कौन बेहोश हो नहीं सकता
ऐ दोस्त मोहब्बत के सदमे तन्हा ही उठाने पड़ते हैं रहबर तो फ़क़त इस रस्ते में दोगाम सहारा देते हैं
तू बदलता है तो बे-साख़्ता मेरी आँखें अपने हाथों की लकीरों से उलझ जाती हैं
मुहब्बत में इंतज़ार की घड़ियाँ भी खूब होती है सीने की जगह आँखों से धड़कता है दिल
आँख का ऐतबार क्या करते जो भी देखा वो ख़्वाब में देखा
आँखों से तेरी ज़ुल्फ़ का साया नहीं जाता आराम जो देखा है भुलाया नहीं जाता
देख कर दिल-कशी ज़माने की आरज़ू है फ़रेब खाने की
और तो दिल को नहीं है कोई तकलीफ़ ‘अदम’ हाँ ज़रा नब्ज़ किसी वक़्त ठहर जाती है
चेहरे पे मेरे जुल्फों को फैलाओ किसी दिन, क्यूँ रोज गरजते हो बरस जाओ किसी दिन, खुशबु की तरह गुजरो मेरी दिल की गली से, फूलों की तरह मुझपे बिखर जाओ किसी दिन।
चेहरे पर हंसी छा जाती है, आँखों में सुरूर आ जाता है, जब तुम मुझे अपना कहते हो, मुझे खुद पर गुरुर आ जाता है।
दिल की धड़कन और मेरी सदा है तू, मेरी पहली और आखिरी वफ़ा है तू, चाहा है तुझे चाहत से भी बढ़ कर, मेरी चाहत और चाहत की इंतिहा है तू।
मैं मोहब्बत करता हूँ तो टूट कर करता हूँ, ये काम मुझे जरूरत के मुताबिक नहीं आता।
तेरी मोहब्बत को कभी खेल नहीं समझा, वरना खेल तो इतने खेले है कि कभी हारे नहीं।