आँख का ऐतबार क्या करते जो भी देखा वो ख़्वाब में देखा
आँखों से तेरी ज़ुल्फ़ का साया नहीं जाता आराम जो देखा है भुलाया नहीं जाता
देख कर दिल-कशी ज़माने की आरज़ू है फ़रेब खाने की
और तो दिल को नहीं है कोई तकलीफ़ ‘अदम’ हाँ ज़रा नब्ज़ किसी वक़्त ठहर जाती है
मोहब्बत में हम तो जिए हैं जिएंगे, वो होंगे कोई और मर जाने वाले