सौ बार मरना चाहा उनकी निगाहों में डूब के वो हर बार निगाहें झुका लेते हैं, मरने भी नहीं देते है
तुझसे हारूं तो जीत जाता हूँ, तेरी खुशियाँ अज़ीज हैं इतनी।
आँखों में कौन आ के इलाही निकल गया, किस की तलाश में मेरे अश्क़ रवां चले।
मेरे ख़त में जो भीगी भीगी सी लिखावट है, स्याही में थोड़ी सी मेरे अश्कों की मिलावट है।
तेरी मर्जी से ढल जाऊं हर बार ये मुमकिन नहीं, मेरा भी अपना वजूद है, मैं कोई आइना नहीं।
अपने रुख पर निगाह करने दो खूबसूरत गुनाह करने दो, रुख से पर्दा हटाओ ऐ जाने-हया आज दिल को तबाह करने दो।
गुरूर तो नहीं किया आजतक मैंने मगर तेरे यार को शहेंशॉ भी सलाम करते हैं
चमक सूरज की नहीं मेरे किरदार की है, खबर ये आसमाँ के अखबार की है,
बेवक़्त, बेवजह, बेहिसाब मुस्कुरा देता हूँ, आधे दुश्मनो को तो यूँही हरा देता हूँ।
अगर लोग यूँही कमियां निकालते रहे तो, एक दिन सिर्फ खूबियाँ ही रह जायेगी मुझ में।
आसमान पर चलने वाले जमीं से गुज़ारा नहीं करते, कहते है हर बात जुबां से हम, इशारा नहीं करते, हर हालात को बदलने की हिम्मत है हम में, वक़्त का हर फैसला हम गंवारा नहीं करते।
मैं मोहब्बत करता हूँ तो टूट कर करता हूँ, ये काम मुझे जरूरत के मुताबिक नहीं आता।
तेरी मोहब्बत को कभी खेल नहीं समझा, वरना खेल तो इतने खेले है कि कभी हारे नहीं।